Book Title: Meri Mevad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 110
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेवाड़ के उत्तर-पश्चिम प्रदेश में ९५. जानबूझकर इरादतन साधु-साध्वियों को मन्दिर में उतारना, भगवान् की गोदी में पात्र रखना, भगवान् के सामने ही बैठ कर आहार- पानी करना और यदि मौका पड़ जाय तो मूर्तियों को तोड़ने - तुड़वाने की अधमता से भी वे लोग दूर नहीं रह सके हैं। ऐसी अनेक घटनाएँ मेवाड़ में घटने और उनके मुकदमे के उदाहरण मौजूद हैं । जहाँ स्थानकवासी भाइयों की बस्ती होगी, वहाँ तो संवेगी साधुओं को उतरने का स्थान और गोचरी पानी अवश्यमेव मिल जायगा । किन्तु, जहाँ तेरहपन्थियों की बस्ती होगी, वहाँ आहारपानी की तो बात ही दूर है, स्थान मिलना भी अत्यन्त कठिन होगा। सामान्य सभ्यता जैसे मानुषीय धर्म से भी विमुख बने हुए ये तेरह - पन्थी इस दशा में भी अपने आपको जैन कहलाते हैं, यही अत्यन्त आश्चर्य और दुःख का विषय है । अपने तेरहपन्थी साधु-साध्वी के अतिरिक्त और किसीको भी, फिर वह चाहे साधु हो या दुःखी गृहस्थ दान देने में वे पाप मानते हैं । एक मनोरंजक घटना सुनिये । गंगापुर में एक तेरहपन्थी गृहस्थ चर्चा करने आया । चर्चा कर चुकने के पश्चात् न जाने किस कारण से उसने मुझसे कहा, कि " मेरे यहाँ साधु को गोचरी भेजिये" । मुझे मालूम था कि यह तेरहपन्थी है । फिर भी गोचरी की विनति करते देख कर मुझे आश्चर्य हुआ । मैंने पूछा कि – “हमको आप धर्म समझ कर गोचरी देंगे, या व्यवहार ?" इसके उत्तर में उसने स्पष्ट रूप से For Private And Personal Use Only

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