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मेवाड़ के उत्तर-पश्चिम प्रदेश
अच्छा स्थान करेड़ातीर्थ है। वहाँ का कैसा सुन्दर वातावरण है ! ऐसे पवित्र वातावरण में यदि एक गुरुकुल की स्थापना हो जाय, तो वह निश्चय ही मेवाड़ के लिये आशीर्वाद रूप हो पड़े । मेरी करेड़ा की स्थिरता में उदयपुर से आये हुए जैन महासभा के नेताओं को मैंने इसकी समुचित सूचना दी थी। करेड़ातीर्थ के सुयोग्य मैनेजर श्रीमान् कनकमलजी भी इस प्रस्ताव को पसन्द करते हैं। उनकी भी यह भावना है। आशा है कि जैन श्वे. महासभा, करेड़ा में एक ऐसा गुरुकुल स्थापित करने का प्रयत्न अवश्यमेव करेगी।
बारहपन्थियों तथा तेरहपन्थियों में अन्तर
हमारे विहार के उपर्युक्त छत्तीस ग्रामों में से गाडरमाला जैसे ग्राम को छोड़ दिया जाय, तो शेष सभी ग्रामों में जैनों की काफी वस्ती दीख पड़ती है। किसी किसी ग्राम में तो जैनों के सौ सौ और दोसौ दोसौ घर मौजूद हैं। किन्तु यह कहने की शायद आवश्यकता ही नहीं रहती, कि ये सभी बारहपन्थी और तेरहपन्थी हैं । बारहपन्थी यानी स्थानकवासी, जिन्हें बाईस टोले वाले भी कहा जाता है । राशमी से आगे बढ़ने के पश्चात अपने को शुद्ध मन्दिरमार्गी कहलवाने का अभिमान करने योग्य तीन घर हमें देखने को मिले । इनमें से एक भीलवाडे में और दो गङ्गापुर में । यद्यपि इन तीनों घरवाले भी अपने आपको मन्दिरमार्गों के रूप में पहचानते हैं, इतना ही है। शेष, न तो वे पूजाविधि जानते
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