Book Title: Meri Mevad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 106
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - मेवाड़ के उत्तर-पश्चिम प्रधेश मै के समय, उस समय के वर्तमान राजा देशाधिपति की कल्याण भावनाएँ की जाती है : “भरतक्षेत्रे, मेदपाटदेशे महाराणा श्री भूपालसिंहजी विजयराज्ये.... " इत्यादि करके । राज्य की इस प्रकार शुम कामनाएँ करनेवाले महानुभाव सचमुच ही राज्य के सच्चे शुभेच्छक हैं। और धार्मिक दृष्टि से वे सेवा ही कर रहे हैं। यही कारण है कि राज्य की तरफ से ऐसे महानुभावों को धार्मिक सेवा के निमित्त कुछ न कुछ वार्षिक वर्षासन दिया जाता है । यह राज्य की सच्ची धार्मिकता का परिचायक है । सुना गया है कि श्रीमान् अनूपचन्द्रजी को भी उनकी ऐसी सेवा के बदले में राज्य की तरफ से कुछ रकम वर्षासन के तौर पर वर्षों से मिल रही है। हमारे ख्याल से तो ऐसे धर्मसेवकों का राज्य को और भी अधिक सम्मान करना चाहिए, ताकि वे राज्य की धार्मिक सेवा उत्साह से करते ही रहें। मझेरा जैन गुरुकुल उदयपुर से उत्तर-पश्चिम में प्रयाण कर के ठेठ मारवाड़ के नाके पर पहुँचने तक, किसी भी स्थान पर कोई एक भी जैनसंस्था नहीं दीख पड़ी। पहाड़ी प्रदेशों तथा घोर अन्धकार में रहनेवाली प्रजा में यदि शिक्षा का प्रचार होता तो इस प्रकार की दशा हो ही कैसे सकती थी ! यह सत्य है कि उदयपुर के वर्तमान महाराणाजी के विद्याप्रेम के प्रताप से अनेक सरकारी स्कूल स्थापित हुए हैं और होते जा रहे हैं, किन्तु सामाजिक दृष्टि से For Private And Personal Use Only

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