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मेरी मेवाड़यात्रा
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उदाहरणार्थ- देलवाड़ा के मन्दिरों में अनेक शिलालेख हैं । इन शिलालेखों का अधिकांश, वि० सं० १४९० से १५०० तक का है । देलवाड़ा, मेवाड़ की पंचतीर्थी में से एक है, अतः उसका वर्णन " मेवाड़ की पंचतीर्थी " नामक प्रकरण में किया गया है।
इसी तरह पलाणा का मन्दिर भी विशाल है । उसके आसपास २४ देरियाँ हैं । यहां की चक्रेश्वरी की मूर्ति पर सं० १२४३ की वैशाख शु० ९ शनिवार का लेख है । इस लेख को देखने से प्रकट होता है कि श्री नाणागच्छीय घर्कटवंशीय पार्श्वसुत ने केश्वरी की यह मूर्ति बनवाई और श्री शान्तिसूरिजी ने उसकी प्रतिष्ठा की । इसी तरह सं० १२३४ का एक दूसरा लेख है । की मूर्ति पर के लेख में इस ग्राम का 'पाणाण' के नाम से उल्लेख किया गया है । आजकल इसकी पलाणा के नाम प्रसिद्ध है ।
केलवा के तीनों मन्दिर, एक ऊंची टेकरी पर पास ही पास बने हुए हैं | ये मन्दिर अत्यन्त विशाल और इनकी बनावट रमणीय है । यहां से ग्यारहवीं शताब्दी के शिलालेख प्राप्त हुए हैं । यह वही ग्राम है कि जहाँ से तेरहपन्थी मत के उत्पादक भीखमजी ने तेरहपन्थी मत निकाला था । यद्यपि भीखमजी गुरु से विरुद्ध तो सोजतरोड के पास स्थित बगड़ी नामक ग्राम से हुए थे, किन्तु उन्होंने अपने मत की स्थापना यहाँ से की थी । इन तीनों मन्दिरों में से किसी एक मन्दिर के चबूतरे पर पहले
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