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उदयपुर के जैनों की वर्तमान स्थिति.
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आदि भी हैं । इस तरह, ओसवालों का अधिकांश इस प्रकार की लाइनों में कार्य करता है । साथ ही कोई कोई महानुभाव बड़ीबड़ी जागीरवाले एवं बड़े बड़े जागीरदारों के साथ लेन देन करने वाले भी हैं। ऐसे लोगों में, सेठ रोशनलालजी सा. चतुर मुख्य हैं । सेठ रोशनलालजी चतुर का कुटुम्ब, सदा से जैनसंघ का आगेवान रहता आया है। तीर्थरक्षाके प्रसंगों में अथवा धर्मरक्षा तथा धर्म प्रभावना के किसी भी कार्य में, इस कुटुम्ब की उदारता तथा आगेवानी लोकविदित है । आज भी यह कुटुंब, देव-गुरु-धर्म की सेवा के कार्यों में, मुख्य भाग ले रहा है। धर्म के प्रभाव से, सरस्वती तथा लक्ष्मीदेवी का निवास, सेठ चतुराँवाला की हवेली में मौजूद है । सेठ रोशनलालजी बड़े भारी व्यवसायी होते हुए मी, व्रतधारी एवं ज्ञान और क्रिया दोनों ही में अच्छो रुचि रखनेवाले हैं।
दूसरा वर्ग पोरवालों का है । पोरवाल भाई मी जिस तरह धर्मश्रद्धा में दृढ़ हैं, उसी तरह उदारता में भी हैं । पोरवाल लोग अधिकतर व्यौपारी हैं। उनमें, सरकारी नौकरी करने वाले कम हैं । इस वर्ग में सेठ कारुलालजो मारवाडी, अर्जुनलालजी मनावत, नाहर कुटुंब, सिंगटवाड़िया कुटुंब - आदि परिवार सचमुच ही धर्मप्रेमी तथा उदारचित्त वाले हैं ।
जैन समाज की संगठन शक्ति को छिन्न-भिन्न कर डालने वाले जिस रोग का प्राबल्य अन्यान्य शहरों अथवा प्रान्तों में दीख पड़ता है, वह रोग यहां भी कुछ अंशों में देखा जाता है । यह, वेद की ही बात है । एक दूसरे को छोटे बड़े – उँचे
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