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मेरी मेवाडयात्रा पोसाले हैं। वे कुलगुरु हैं, जैनधर्मावलम्बी है और मूर्तिपूजा में श्रद्धा रखते हैं।
यहां की यात्रा भी खासतौर से करने योग्य है ।
.५-दयालशाह का किला । "नव चोकी नव लाखकी,
क्रोड रुप्यों रो काम । राणे बँधायो राजसिंह,
राजनगर है गाम ॥ . वोही राणा राजसिंह,
वोही शाह दयाल । वणे बँधायो देहरो,
वणे बँधाई पाल ॥ विक्रम की अठारहवीं शताब्दी में, उदयपुर की राजगद्दी पर हुए राणा राजसिंह ने, कांकरोली के पास राजनगर बसाया । इस राजनगर के पास एक विशाल तालाव की पाल इतनी अधिक जबरदस्त है, कि जिसके निमित्त राणा राजसिंह ने एक करोड़ रुपया खर्च किया था। तालाब की पाल के पास ही एक बड़ा-सा पहाड़ है । इस पहाड़ पर एक किला है, जो 'दयालशाह' का किला' के नाम से प्रसिद्ध है। वास्तव में, यह कोई किला नहीं बल्कि एक विशाल मन्दिर है । 'दयालशाह का किला' के नाम से प्रसिद्ध यह मन्दिर, दयालशाह' नामक एक ओसवाल गृहस्थ ने बनवाया था। 'दयालशाह' महाराणा 'राजसिंह' के एक वफादार
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