Book Title: Meri Mevad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 91
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६७६ सीखरबन्ध www.kobatirth.org प्रासाद, ही करत मेरु सां अतिवाद । जीनाल, देख्या दिल हे खुस्याल ॥ ६ ॥ # श्री पद्मनाभजी पूनिम वासरे मेलाक, नर थट्ट होत हे मेलाक । अग्रे हस्ती हे चोगांन, सधा जिनप्रासाद Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्ती लड़त हे तिहीआन ॥ ७ ॥" यों. उदयपुर के किले से बाहर के मन्दिरों का वर्णन कर चुकने के पश्चात्, कवि आगे बढ़ता है और कहता है, कि 66 'मल्ल लड़त है कुजबार, बैजनाथ का मेरी मेवाड़ यात्रा · अग्रे ग्राम है सीसार । परसाद, करत गगन से नितवाद ॥ १२ ॥ भारीक, जू मूरत बहोत हे प्यारीक । सोलमा जिणंद, पेष्यां परम हे आनन्द ॥ ११ ॥ आदि जंगी झाड है अति अंग, चरण हे मंडाण, पूज्यां होत हे सुषषान । यदि जू पोल ही दुरंग ॥ १२ ॥ For Private And Personal Use Only

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