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मेरी मेवाड़यात्रा उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में ये कवि हुए हैं। कवि हेम ने, अपनी इस कृति में, प्रारम्भ में मेदपाट प्रशस्ति, राजप्रशस्ति, जवानसिंह प्रशस्ति, अष्टक, वंशावली पचीसी, महाराणा वंशावली, जवानसिंहजी की सवारी का वर्णन, उदयपुर नगर वर्णन, नगर के बाहर का वर्णन, इत्यादि प्रकरण लिखे हैं। कवि ने उदयपुरनगर का वर्णन करते हुए, अनेक जैनमन्दिरों के नामों का भी उल्लेख किया है। उस वर्णन पर से यह बात विदित होती है, कि उन्नीसवीं शताब्दी में कवि के समय में कितने और मुख्य मुख्य कौन कौन से मन्दिर वहाँ मौजूद थे । एक स्थान पर कवि कहता है कि-----
'अश्वसेन जूनंदं, तेज दिणंद,
श्री सहसफणा नित गहगाटं । महिमा विख्यातं, जगत्रही पातं,
अघ मलीन करै निर्घाटं । श्री आदि जिनेशं, मेटण कलेशं
जसु सूरत भलहलभानं" ।
श्री उदयापुर मंडाणं ॥ १२ ॥ "श्री शीतलस्वामं कर प्रमाणं;
भविजनपूजित जिनअंगं । बोतीस जिनालं भुवन रसालं,
सर्वजिनेश्वर सुखअगं । सत्तर सुभेदं, पुज उम्मेदं,
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