Book Title: Meri Mevad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 92
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ७७ उदयपुर के मन्दिर और आगे बढ़कर, कवि समीनाखेडे का वर्णन करता है" मगरा माछला उत्तंग, किसनपोल ही अतिवंक । षेडा समीने श्री पास, पूजे परम ही हुलास ॥ १३ ॥ दशमी दिवस का मेलाक, __ नरथट होत हे मेलाक । साहमी वच्छलां पकवान, चर्चा अष्टका मंडाण" ॥ १४ ॥ इसके पश्चात्, कवि ने केशरियाजी का वर्णन किया है। "अढारकोस ही अधिकार, धुलेव नगर है विस्तार । केशरियानाथ है विख्यात, जावू आवते केई जात ॥ १५ ॥" अन्त में कवि ने आघाट (आहड़) का वर्णन किया है। वह लिखता है, कि" आघाट गाम हे परसीद्ध, तपाविरुद ही तिहां लीध । देहरा पंचका मंडाण, सिखरबन्ध हे पहिचान ॥ १८ ॥ पार्श्वप्रभुजी जिनाल, . पेष्यां परम हे दयाल । For Private And Personal Use Only

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