Book Title: Meri Mevad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 87
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेरी मेवाडयात्रा मन्दिर है, वे सं.:१६२४ के पश्चात् के ही हैं। कहा जाता है कि उदयपुर का श्री शीतलनाथजी का मन्दिर, उदयपुर के बसाये जाने के समय को है। यानी, नगर के प्रारम्भिक मुहूर्त के साथ ही श्री शीतलनाथजी के मन्दिर का भी शिलारोपण मुहूर्त हुआ था । चाहे जो हो, किन्तु कोई शिलालेख इस बात की साक्षी नहीं देता । शीतलनाथजी के मन्दिर में से जो शिलालेख प्राप्त हुए हैं, उनमें से एक शिलालेख धातु के परिकर पर का है, जो सं. १६९३ के कार्तिक कृष्णपक्ष का है। इस शिलालेख का सारांश यह है, कि “महाराणा श्री जगतसिंहजी के राज्य में तपागच्छीय श्री जिनमन्दिर में श्री शीतलनाथजी का बिम्ब और पीतल का परिकर आसपुर निवासी, वृद्धशाखीय पोरवाल ज्ञातीय पं. कान्हासुत पं. केशर भार्या केशरदे, जिनके पुत्र पं. दामोदर ने स्वकुटुम्ब सहित बनवाया और · भट्टारक श्री विजयदेवसरि के पट्टप्रभाकर आचार्य श्री विजयसिंहसरि की आज्ञा से पं. मतिचन्द्र गणि ने वासक्षेप डालकर प्रतिष्ठापित किया"। . इस लेख को देखकर एक कल्पना अवश्यमेव की जासकती है। और वह यह कि सम्भव है, मन्दिर उदयपुर के बसाये जाने के समय ही बसा हो और फिर कुछ वर्षों के पश्चात् मूलनायक का धातुमय परिकर बनाया गया हो । अतएव वास्तव में यदि यह मन्दिर (श्री शीतलनाथजी का मन्दिर) उदयपुर के बसाये जाने के समय ही बनाया गया हो, तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है । उदयपुर के इन मन्दिरों में से जो शिलालेख प्राप्त होते For Private And Personal Use Only

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