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मेवाड़ की जैन पंचतीर्थी पकड़ न ले जायँ । दयालशाह की लड़की को मुसलमान लोग उठा ले गये थे।
दयालशाह के जीवन सम्बन्धी उपर्युक्त वर्णन श्रीमान् पं. गौरीशंकरजी ओझा ने अपने 'राजपूताने के इतिहास' में अंकित किया है।
जिन ओसवालकुलभूषण दयालशाह ने उपर्युक्त प्रकार के वीरता पूर्ण कार्य किये थे, उन्ही दयालशाह ने एक करोड रुपया खर्च करके नौमंजीला गगन स्पर्शी मन्दिर बनवाया था; जो काँकरोली तथा राजनगर के बीच राजसागर की पाल के पास ही एक पहाड पर सुशोभित है और आज भी 'दयालशाह के किले ' के नाम से प्रसिद्ध है और मूल नायक चौमुखजी श्री ऋषभदेव भगवान् की मूर्तियाँ विराजमान हैं।
कहा जाता है कि यह मन्दिर नौमंजीला था। इसके ध्वज की छाया छः कोस ( बारह माइल) पर पडती थी । आगे चल कर, औरंगजेब ने उसे राजशाही किला समझ कर तुड़वा डाला था। मन्दिर की पहली मंजिल सुरक्षित बच गई. थी। इस समय जो दूसरी मंजिल है, वह नई बनी हुई है।
इस मन्दिर के सम्बन्ध में कहा जाता है कि महाराणा राजसिंह ने राजसागर की पाल बनवाना प्रारम्भ किया, किन्तु वह टिकती नहीं थी। अन्तमें 'किसी सच्ची-सती स्त्री के हाथ से यदि पाल की नींव डाली जाय, तो पाल का काम चल सके' ऐसी
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