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मेरी मेवाड़यात्रा पुत्र महाराणा कुम्भा के राज्य में, ओसवालवंशीय, नवलखा गोत्रीय साह सारंग ने, स्वयं उपार्जन की हुई लक्ष्मी को सार्थक करने के उद्देश्य से, 'निरुपममद्भुतं' ऐसी शान्तिनाथ की मूर्ति परिकर सहित बनवाई और खरतर गच्छीय श्री जिनसागरसूरिने प्रतिष्ठा की।"
श्री शान्तिनाथ भगवान् की मूर्ति पर के उपर्युक्त भाववाले शिलालेख में बिम्ब के लिये अद्भुत विशेषण लगाया गया है। वह विशेषण सकारण है । वस्तुतः वह मूर्ति बैठी हुई लगभग ९ फीट की विशाल है, इसीलिये यह तीर्थ 'अदबदजी के नाम से प्रसिद्ध हुआ और अब मी प्रसिद्ध है।
श्री शान्तिनाथ भगवान् के इस मन्दिर के पास ही एक विशाल मन्दिर टूटी-फूटी अवस्था में पड़ा है । इसमें, एक भी मूर्ति नहीं है। सम्भव है कि यह जीर्ण-शीर्ण मन्दिर किसी समय पार्श्वनाथ या नेमिनाथ का मन्दिर रहा हो । कारण कि प्राचीन तीर्थमालाओं तथा गुर्वावली आदि में यहाँ पार्श्वनाथ तथा नेमिनाथ के मन्दिर होने का उल्लेख मिलता है । श्रीमुनिसुन्दरसरि कृत गुर्वावली के ३२ श्लोक में कहे अनुसार “खोमाण राजा के कुल में उत्पन्न समुद्रसरि ने, दिगम्बरों को जीतकर नागदह का पार्श्वनाथ का तीर्थ अपने स्वाधीन किया था "। श्री मुनिसुन्दरसूरि विरचित पार्श्वनाथ के स्तोत्र से विदित होता है कि यहाँ श्री पार्श्वनाथ का मन्दिर सम्पति राजा ने बनवाया था।
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