Book Title: Meri Mevad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 69
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेरी मेवाड़यात्रा हुए पत्थर तथा यहाँ से प्राप्त हुए शिलालेखों एवं सिक्कों के आधार पर रायबहादुर पण्डित गौरीशंकरजी ओझा इस जगह पर एक बड़ी-सी नगरी होने का अनुमान करते हैं। उनका तो यहांतक कथन है कि इस 'नगरी' का प्राचीन नाम 'मध्यमिका' था । अजमेर जिले के बर्ली नामक ग्राम से प्राप्त हुए वीर संवत् ८४ के शिलालेख में 'मध्यमिका' का उल्लेख मिलता है । 'मध्यमिका' नगरी अत्यन्त प्राचीन नगरी थी। यहां भी अनेक जैनमन्दिर होने का अनुमान किया जा सकता है । ऐसे अनेक स्थान आज भी मेवाड़ में मौजूद हैं। और वहाँ किसी समय अनेक मन्दिर होने का अनुमान भी किया जासकता है आजकल के विद्यमान् मन्दिरों की प्राचीनता, विशालता और मनोहरता देखते हुए, यही कहा जा सकता है कि बड़े-बड़े तीर्थस्थानों को भूला दें ऐसे वे मन्दिर हैं । इन मन्दिरों के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की चमत्कारिक बातें आज भी जनता में प्रचलित हैं । अत्यन्त दुःख का विषय है, कि ऐसे ऐसे प्राचीन तथा भव्य तीर्थ सदृश मन्दिरों एवं मूर्तियों के होते हुए भी, इन स्थानों में उनकी पूजा करने वाला कोई नहीं रह गया है । इन मन्दिरों के पूजने वाले थे, वे कालबल से घट गये और जो बाकी रह गये, वे बेचारे अन्य उपदेशकों के उपदेश से बहक कर, प्रभुभक्ति से विमुख हो बैठे हैं । परिणामतः, बचे बचाये ये मन्दिर तथा मूर्तियाँ वीरान् निर्जन अवस्था को भोग रही हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि किसी भी मन्दिर या मूर्ति की महिमा, उसके उपासकों For Private And Personal Use Only

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