Book Title: Meri Mevad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेरी मेवाड़यात्रा हाथ जोरि चर्नन में अरज करन लागो, चित्रकूट हमारो पुरानो नाथ ! वास है ॥ बनिया है जाति और किंकर को नाम भामा, वर्तमान वास जो यहाँ ते बहु पास है। पुरुषा हमारे रहे रानके मन्त्री खास, रावरो दयालु ! यह दासन को दास है ॥ ७३४ ॥" ___ 'भामा' नाम सुनते ही प्रताप आश्चर्यमग्न हो गये। उन्होंने सोचा, कि भामाशाह तो अपना अत्यन्त मान्य राजपुरुष है। भामाशाह का स्थान, प्रताप के दरबार और प्रताप के हृदयमें कितना ऊंचा था, यह बात प्रताप के ही शब्दों से प्रकट है: "बहुत प्रसन्न होई पातल नजर लीन्ही, कही महाराणा, तुम बान्धव की ठौर हो । लायक हो बहुत, हमारे खास सेवक हो, जेते हैं हमारे मन्त्रि, उनके हु मौर हो ॥" कैसा बहुमान । प्रताप कहते हैं, कि तुम तो हमारे बन्धु की जगह हो, लायक हो, हमारे खास सेवक हो । इतना ही नहीं बल्कि हमारे आज तक के सभी मन्त्रियों में मुकुट के समान हो। प्रताप ने, भामाशाह को, अपना प्यारा देश छोड़ने का कारण बतलाया । भामाशाह, देश न छोड़ने का आग्रह करते हैं और राणाजी के प्रति अपनी हार्दिक भक्ति प्रकट करते हैं। जब, वे मार्ग छोड़ कर अलग नहीं हटते, तब प्रताप कहते हैं, कि For Private And Personal Use Only

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