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राज्य के साथ जैनों का सम्बन्ध राज्यसेवा के कारण, राज्य की तरफ से अनेक प्रकार की व्यवस्थायें कर दी गई थीं। अनेक प्रकार के पट्टे परवाने भी किये गये हैं। आज, क्रमशः बीच-बीच में होनेवाली अन्य लोगों की दखलगीरी के कारण, तथा जैनों के प्रमाद और खास कर जैनों की फिरकेवन्दी के कारण, अनेक अधिकार नष्ट होते जा रहे हैं। उदयपुर की जैन श्वे० महासभा, अपने इन अधिकारों के प्रमाण एकत्रित करके, फिर उन बातों को तानी करने का कार्य अपने हाथ में ले, तो कितना अच्छा हो ? वर्तमान महाराणा साहेब दयालु
और धर्मात्मा होनेसे अवश्य उन प्राचीन हक्कोंको फिरसे ताजे कर देंगे; ऐसी आशा रकखी जा सकती है ?
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