________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३०
भेरी मेवाड़ यात्रा
का विरुद दिया गया था। कहा जाता है, कि जैनोंने की हुई राज्य सेवा के उपहार स्वरुप, राज्य की तरफ से अत्यन्त प्राचीनकाल से यह नियम बना दिया गया है, कि जब भी कोई नयाग्राम बसाया जाय, तो सबसे पहले उसमें श्री ऋषभदेव के मन्दिर की नींव डाली जानी चाहिये। जैनों की सेवा के ही कारण, आज भी राज्य की तरफ से ऐसा हुक्म है, कि कोई भी मनुष्य मारने के इरादे से बकरे आदि को बाजार में हो कर नहीं ले जा सकेगा । और यदि कोई ले जाता हो, तो उसे कोई भी मनुष्य पकड़कर उसके कान में कड़ी डाल सकता है ।
श्री शीतलनाथजी के मन्दिर के बाहर, एक शिलालेख है, जिसमें जैनाचार्य के उपदेश से, कबूतर मारने का निषेध किये जाने का उल्लेख है। तपागच्छ के श्रीपूज्य यदि उदयपुर में आवें, तो उनका सत्कार राज्य की तरफ से इतना ही किया जाता है, कि जितना काकरोली अथवा नाथद्वारे के गुसाईजी का होता है । अर्थात् महाराणाजी को चम्पाबाग तक उनको लाने के लिये सामने जाना चाहिये । ( आजकल, महाराणाजी की तरफसे दीवान के जाने का रिवाज रह गया है । ) तपागच्छ की गद्दी के आचार्य की गादी बदलने के समय, राज्य की तरफ से छड़ी, पालकी, दुशाला, आदि वस्तुएँ भेजी जाती थीं । आज कल नक्द रकम भेज देने का रिवाज पड़ गया है ।
इस तरह, जाँच करने पर मालूम होता है, कि राज्य के साथ के जैनों के पुराने सम्बन्धों और जैन मन्त्रियों द्वारा की हुई
For Private And Personal Use Only