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मेवाड़-प्रवेश.
उपर एक कवि के शब्दों में कहा गया है, त्यों
" मेवाडे देशे, भूले-चूके,
मत करियो परवेश !" फिर भी, जहाँ 'क्षेत्र फरसना' बलवती होती है, वहीं इस प्रकार के कथनों के आदेश की कोई किंचित् भी परवा नहीं करता, और यदि करने भी जाय, तो सिद्ध नहीं हो सकती। पाटण में चातुर्मास निश्चित हो जाने के बाद, किसी ने यह बात कभी स्वप्न में भी नहीं सोची थी, कि ठीक बीस वर्ष पश्चात् मेवाड़ में प्रवेश होगा और उदयपुर में चातुर्मास होगा। भावी के उदर में क्या भरा है, इस बात की किसे खबर है । आबू की शीतलता में गरमी के दिन व्यतीत करते समय, अकस्मात ही उदयपुर के युवक दिखलाई पड़ते हैं। "नहीं हुजूर, पधारना ही पडेगा" "वचे बचाये हम लोगोंको बचाना हो, तो 'हो' कीजिये और फिर प्रस्थान कीजिये" " गुरुदेव द्वारा
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