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मेवाड प्रवेश
चोर डाकुओं का उपद्रव भी कुछ कम विकट मार्ग में, जिस समय पैरों में काँटे तब मुख से अवश्यमेव यह बात निकल पडती है, कि
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नहीं है । इस प्रकार के तथा कंकर चूभ रहे हो,
मेवाड़े देशे भूले-चूके, मत करियो परवेश |
नहीं आछो खाणो, बहु दुःखजाणो, राणाजी रे देश ॥
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फिर भी, मेवाड का महत्त्व समजनेवालों के लिये, इस प्रकार के कष्टों की कुछ कीमत नहीं है । जो देश साधुओं के विहार के अभाव में निराश हो चुका हो, जिस देश में अनेक प्रकार से सेवा के क्षेत्र मौजूद हो, जिस देश की जनता भद्रिक परिणामी और उपदेश ग्रहण करने को उत्सुक हो, जिस देश में संघ सोसायटी के झघडे न हों, जहाँ गच्छों की मारामारी न हो, ऐसे शान्त क्षेत्र में, शान्त वृत्ति से सेवा का कार्य करनेकी भावना किसे न होगी। हम उदयपुर पहुँचे और चातुर्मास वहीं किया ।
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