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मेरी मेवाडयात्रा
सूरिजी महाराज का स्थान मुख्य है। बीस वर्ष की लम्बी अवधि हो चुकी है, किन्तु आज भी उन गुरुदेव के उपकारों को उदयपुर की जनता स्मरण कर रही है।
उदयपुर का श्री संघ आज भी इस बात को मान रहा है, कि यदि स्वर्गस्थ गुरुदेवने सं० १९७२ का चातुर्मास उदयपुर में न किया होता, तो आज यहां श्रद्धालु-जैनों की जो संख्या दिखलाई पडती है, वह दिखाई देती या नहीं इसमें सन्देह है। जिस मेवाड़ में आज मी लगभग तीन हजार मन्दिर मौजूद हैं, उस मेवाड़ में इन मन्दिरों को माननेवालों की-इनको पूजनेवालों की संख्या पूर्वकाल में कितनी रही होगी, इसकी कल्पना सरलतापूर्वक की जा सकती है। कहा जाता है, कि मेवाड़ में एक समय पचासहनार श्वे० मूर्तिपूजक नैनों के घर थे । आज उसी मेवाड़ में (उदयपुर के लगभग २५०-३०० घों सहित ) मुश्किल से ५०० या ७०० घर मूर्तिपूजकों के रह गये हैं। इस दशाके आने का एक प्रधान कारण यह है कि उस क्षेत्र में श्वे० मूर्तिपूजक साधुओं के विहार का अभाव । पिछले अनेक वर्षों से, साधुओं का विहार बन्द-सा रहा है।
और दूसरी तरफ से, अन्यान्य सम्प्रदायों के उपदेशकों का सतत प्रयत्न जारी ही रहा । इसी के परिणामरूप यह दशा आ गई है। यद्यपि, यह बात सत्य है, कि पिछले समय में भी वर्तमानकाल के अनेक आचार्यों तथा मुनिराजों ने मेवाड़ में प्रवेश किया है। किन्तु, उनका भ्रमणक्षेत्र केवल उदयपुर अथवा केशरियाजी के आने
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