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SINEENNA, समर्पण !
पूज्य पिताजी !
आपके स्वर्गवास के बाद " मरणभोज" जैसे रूढ़िबाद और पाखण्डोंकी विशाल सेनाने मुझ पर भयंकर आक्रमण किया । किन्तु आपके जात्युत्थान एवं समाजसुधारके आदर्शोंसे ओत-प्रोत यह सिपाही इस 'महानाश' के आगे तिलभर भी झुकनेवाला नहीं था । और अन्तमें यही हुआ भी । यह पुस्तकनिर्माण भी उसीका शुभ फल ह
पर मूलरूपमें व्याप ही तो इसके प्रेरक हैं, अत: यह तुच्छ कृति आपकी स्मृति स्वरूप आपको ही सादर तथा श्रद्धापूर्वक समर्पित है ।
- परमेष्ठी |
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