Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

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Page 115
________________ कविता संग्रह। काटत चिठिया लिख लिख, बढ़ौ हुलास । गिनन लगे दिन पै दिन लग गई आस ॥ कैसिन भई तैयारी, लखी न जाय । भरि मरिके सब लोटा, बैठिसि आय ॥ करि करिके तारीफें, लगे उड़ान । उड़ा उडूके चलिगे, होत बिहान ॥ रोवत दुखी कुटुमवा, करत विलाप । कबहुँ न हेरत फिरिके, कीन्हेसि पाप ॥ भूखे मरत लड़कवा, घर विक जाय । फेरि न पूछत कोऊ, घर पर आय ॥ मृतक भोज जो खावत पाप कमात । इतने हू पै विक है लाज न भात ॥ दुखी कुटुममें जाके, माल उड़ात । मानहु मानस मक्षक, तिन कहँ तात । गीष, श्वान, कौमा मरु, बने शृगाल । मृतक भोजमें जाकर, खावत माल | भैय्यन ! बिनवौं तुम सन, है कर जोर । कछु इक अरजी सुनिल्यो, पावन मोर ॥ कबहुँ न जाकर खाबहु, मिरतक भोज । कठिन कमाई खाकर, जीवहु रोज ॥ दया करहु दुखियन पे, बनो दयालु । तासौं नित प्रभु तुम पर, रहै कृपाल । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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