Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

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Page 114
________________ १०.] मरणमोज। मृत्युभोज निषेध । [ रच०-६० शुकदेवप्रसादजी तिवारी विद्याभूषण । ] कह की कह सब है गई, समुझि न जाय । यह समाज कस है गई, बुद्धि विहाय ॥ समदर्शीपन यानें, दियो भगाय । __ दूजेके दुखमें मुख, रही मनाय ॥ पंचनकी बुधि झिंगुरन, चरिंगे हाय । ऐसिन दुरमति फैली, कही न जाय ॥ जाति बीच यदि कोऊ कहुँ मरि जाय । तीन दिनोंके पीछे, सब जुरि जांय ॥ मृतक ढोर पे मानहु, गिद्ध उड़ाय । ऐसहि नीम सँभारे, अरु ललचाय ॥ देखत नाहिं विपत्ती, दुखियन केर । खोयो मानुस घरको, सेवहिं टेर ॥ दया गँवा दई हियसों, भये कठोर । निरदई है के निरनै, दयो बटोर ॥ देवत निरनै, घरकी, दशा भुलाय । दुखी जीव सब घरके, का कल खाय ॥ इतने पे, पुरुखनकी, कथा सुनाय । ऊँची होय रसहया, बात न जाय ।। चढ़ा सरग पै ‘सबको, देत गिराय । पीछेका फिर है, दया न माय ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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