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परणमोज ।
प्राणाधारसे ! [रच०-पं० राजेन्द्रकुमारजी जैन 'कुमरेश' साहित्यरत्र ।] नाथ मापके साथ उसी दिन, यदि मैं भी मर जाती। तो मरनेसे अधिक आपदा, यह मुझ पर क्यों आती। मैं दुखिया हा यहां रह गई, और साथ है कच्चा । भटक रहा दाने दानेको, माज तुम्हारा बच्चा ॥१॥ नहीं खबर लेनेवाला है, भूख प्यासकी मेरी । मैं हूं और लाल है मेरा, फूटी किस्मत मेरी ।। हाय व्यथा अपनी भी तो मैं, नहीं कहीं कह सकती। रो सकती हूं हाय न मैं पर, रोकर भी रह सकती ॥ २ ॥ पंचोंका मादेश मुझे हा, पूरण करना होगा। करूं नहीं तो, नहीं जातिमें, मेरा रहना होगा ॥ मरण भोज करना ही होगा, केसी करूं करे रे। छोड़ गये तुम तो प्रीतम पर, पास न कुछ भी मेरे ॥ ३ ॥ बेचूं यह रहनेका घर क्या, या इस तनके गहने । नहीं किया तो नाथ वाइने, मुझे पड़ेंगे सहने ॥ यह बच्चा होकर मनाथ हा. भटके मारा मारा। पर पंचोंका पेट हाय क्या, भर दूं लड्डु द्वारा ॥ ४ ॥ मामो पंचो भरे जीमलो, मैं हूं लाल खड़ा है। हमें मिटा दो तुमको तो फिर, होगा लाम बड़ा है ।। मरणभोज हो मरणमोन ही, पंचो भरे करूंगी। अपना और काल भपनेका, हां! हां !! हनन करूंगी ॥ ५ ॥
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