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कविता संग्रह। काटत चिठिया लिख लिख, बढ़ौ हुलास । गिनन लगे दिन पै दिन लग गई आस ॥
कैसिन भई तैयारी, लखी न जाय ।
भरि मरिके सब लोटा, बैठिसि आय ॥ करि करिके तारीफें, लगे उड़ान । उड़ा उडूके चलिगे, होत बिहान ॥
रोवत दुखी कुटुमवा, करत विलाप ।
कबहुँ न हेरत फिरिके, कीन्हेसि पाप ॥ भूखे मरत लड़कवा, घर विक जाय । फेरि न पूछत कोऊ, घर पर आय ॥
मृतक भोज जो खावत पाप कमात ।
इतने हू पै विक है लाज न भात ॥ दुखी कुटुममें जाके, माल उड़ात । मानहु मानस मक्षक, तिन कहँ तात ।
गीष, श्वान, कौमा मरु, बने शृगाल ।
मृतक भोजमें जाकर, खावत माल | भैय्यन ! बिनवौं तुम सन, है कर जोर । कछु इक अरजी सुनिल्यो, पावन मोर ॥
कबहुँ न जाकर खाबहु, मिरतक भोज ।
कठिन कमाई खाकर, जीवहु रोज ॥ दया करहु दुखियन पे, बनो दयालु । तासौं नित प्रभु तुम पर, रहै कृपाल ।
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