Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

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Page 55
________________ मरणभोज विरोधी आंदोलन | [ ४१ श्रीदासने नरकका वर्णन ( मरणभोजकी करुणापूर्ण घटनायें) सुनाया है। पंचोंने यह नरक कहानी तैयार की है। इसलिये तुम इन नारकियोंमें शामिल मत होना और मरणभोजकी प्रथाका जल्दी ही मुंह काला करना । इसी प्रकार कई विद्वानोंने अपने उद्गार प्रगट किये। जिसका प्रभाव यह हुआ कि उसी समय करीब १०० अग्रगण्य स्त्री पुरुपौने तो स्टेजपर माकर विवेचन किया और प्रतिज्ञायें कीं कि अब हम मरणभोज में कतई भाग नहीं लेंगे। सेठ घरमदासजी और दयाचंदजी सतनाने घोषणा की कि हमारे सठना नगर में किसी भी जैनका मरणभोज नहीं होगा । सेठ धरमदासजीने अपनी माताका मरणभोज न करने की प्रतिज्ञा की और १५०) परिषदको दान दिये । अनेक नगरोंके वृद्ध तथा युवकोंने प्रतिज्ञायें कीं कि हमारे यहां अब मरणभोज नहीं होगा। करीब १००० स्त्री पुरुषोंने मरणभोज विरोधी प्रतिज्ञापत्रोंपर अपने दस्तखत किये, जो इसप्रकार है: 1 " मुझे विश्वास होगया है कि मरणमोजकी प्रथा जैन धर्म और जैनाचार के सर्वथा विरुद्ध तथा अनावश्यक एवं असभ्यताकी द्योतक है । इसलिये मैं प्रतिज्ञा करता (ती) हूं कि अब मैं कभी किसी भी आयु वालों (स्त्री या पुरुष) के मरणभोज में भाग नहीं लूंगा (गी) और मेरा सर्वदा यह प्रयत्न रहेगा कि हमारे यहांकी पंचायत से भी मरणभोज बन्द कर दिया जाय तथा इस घृणित प्रथाका सर्वथा नाश होजाय । " परिषद के बाद भी यह "प्रतिज्ञापत्र" हजारोंकी संख्या में भरे www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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