Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ ५०] मरणमोज । पहुंचने पर विश्रान्ति स्थान ( जो खास इसीलिये बनाया गया है) में ठहरते हैं। वहां पर मृतव्यक्ति के घर के लोग बिड़ी पान सुपारीका प्रबंध करते हैं और अधिकांश लोग खाते हैं। फिर स्मशान में जाकर मुर्दा जलाया जाता है। उधर मुर्दा जलता है और इधर स्मशानमें जानेवाले लोग मृतव्यक्तिकी ओरसे चाय बिड़ी पीते हैं और ताश मादि खेलते हैं। और कभीर तो नहानेके पूर्व मीठाई तक उड़ाई जाती है। मरणभोजसे भी भयंकर इस प्रथाको देखकर किसे माश्चर्य न होगा ? बिचारे मरनेवाले के घाबालोंको मुके साथ ही साथ मिठाई मादिका भी प्रबंध करना पड़ता है जो स्मशान में लेजाई जाती है और मानों मुर्देकी छातीपर बैठकर खाई जाती है । यह भी मरण. भोजका एक भयंकर प्रकार है । अब तो कई जनोंमें मिठ ई खानेकी प्रथा बन्द होरही है, फिर भी कुछ जैनोंमें यह प्रथा चालू है । मुझे स्वयं ३-४ वार स्मशान जाना पड़ा और मैंने जब यहांके लोगोंकी इस अमानुषी प्रथाको देखा तब मेरा हृदय घृणासे भर भाया । कुछ लोगोंसे इसके विरोधमें कहा भी किन्तु जिस प्रकार माणभोजिया लोग अपना हठ नहीं छोड़ सकते वैसे यह लोग भी क्यों छोड़ने लगे ? हाँ, यदि किसीकी समझमें भागया तो मिठाई न खाकर मात्र चाय पीकर ही संतोष करते हैं । यह है मरणभोनका दूसा भयंकर चित्र । स्मशान के बाद गुजरातके जैनोंमें एक ही मरणभोज नहीं होता, किन्तु ग्यारवा, (११वें दिन) वारवाँ (१२ वें दिन) और तेरवाँ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122