Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

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Page 97
________________ सुप्रसिद्ध विद्वानों और श्रीमानोंके अभिप्राय। [८३ शक्ति १३ दिनमें नुक्ता करनेकी न हो तो पंच लोग जमानत लेकर पगड़ी बांध देते हैं । फिर सुविधा होनेपर नुक्का करवाते हैं अन्यथा उसे भटका देते हैं। इधर हूमड़ोंमें 'पिण्ड क्रिया' भी ब्राह्मणसे कराई जाती है। गंगास्नान' और 'गोदान' का भी संकल्प किया जाता है। जहां जैन समाजमें इतना मिथ्यात्व घुसा हुमा है वहांकी . स्थितिका क्या वर्णन करूं? ४४-सेठ मूलचन्द किसनदासजी कापड़ियासंपादक जैनमित्र तथा दिगम्बर जैन, सूरत-मरणभोज किसी भी. भवस्थामें शास्त्रोक्त नहीं है । मरण और भोज यह शब्द ही संगत नहीं हैं । मरण मोजकी प्रथा मिथ्यात्वियोंका अनुकरण है । जैनधर्म और जैनाचारसे यह सर्वथा विरुद्ध है। पहले सूरतमें हमारी ( वीसा हूमड़ ) जातिमें मरणके ५-५ नीमनवार जबर्दस्ती देना पड़ते थे। किन्तु अब यह प्रथा यहांसे उठ ही गई है। अब तो ८० वर्षके बुड्ढे का भी मरणभोज नहीं किया जाता । इसी प्रकार अन्य प्रान्तों में भी शीघ्र ही बंद होजाना चाहिये। इसके लिये स्वयं शामिल न होनेकी और दूसरोंसे प्रतिज्ञा करानेकी आवश्यक्ता है। १५-मिश्रीलालजीगंगवाल इन्दौर-पहां नुक्ता मांदो. लनके समय कई प्रचण्ड जैन विद्वानोंकी सम्मतियां मंगाई गई थीं। उनके बलपर मैं कह सकता हूँ कि इस प्रथाका जैन धर्म और जैनाचारसे कोई संबन्ध नहीं है। इस प्रथाका बंद होना आवश्यक है। ४६-पं० सत्यंधरकुमारजी सेठी-जिस प्रकार जैनों में देवी देवताओंकी पूना घुस गई, उसी प्रकार पड़ौसियोंके संसर्गसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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