Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

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Page 105
________________ मरणभोज कैसे रुके ? [९१ लो भौर उसका डटकर विरोध करो तो निश्चय ही यह प्रथा समाजसे जल्दी ही उठ जाय । तुम देख रही हो कि मरणमोजके कारण तुम्हारी विधवा बहिनोंकी कैसी दुर्दशा होती है। फिर भी तुम इसका विरोध क्यों नहीं करती ? तुम्हारी ओरसे तो कोई मान्दोलन ही नहीं दिखाई देता । तुम्हें तो इसके विरोधमें सबसे आगे होना चाहिये। मुझे विश्वास है कि जब तुम इसके विरोधमें अपनी मावाज़ उठाओगी तब मरणभोजका रहना असम्भव होजायगा । समाजके मुखियाओ! अब देश और समाजकी गतिविधिको भी देखो तथा विचार करो कि इस भयंकर प्रथाने अपनी समाजका कैसा नाश किया है । सैकड़ों हजारों घर इसीके कारण बरबाद होगये हैं। इसलिये इस रूदिका सर्वथा नाश कर दो। माप तो आजकलके स्वतंत्र बातावरणमें जी रहे हैं, तब फिर इस बिनाशक राक्षसी प्रथाको क्यों नहीं मिटा देते ? सम्माननीय पाठकवर्ग! इस पुस्तकको पढ़कर यदि मापके मनमें मरणभोज विरोधी विचार उत्पन्न हों तो आप भी कुछ प्रयत्न करिये । ऐसे कार्य तो संगठन और ऐक्यसे ही होसकते हैं। माशा है कि यदि आप लोग सम्मिलित प्रयत्न करेंगे तो अवश्य ही सफलता प्राप्त होगी। जिस दिन जैन समाजसे मरणभोजका मुंह काला होगा उसी दिन जैन समाजका मुख उज्वल होसकेगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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