Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

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Page 96
________________ ८१] मरणभोज। गटकने के लिये जैन समाजको धर्मके नामपर धोखा देकर मिथ्यात्वके गहरे गड्ढेमें ढकेलते हैं और अपने लिये नर्कगतिका बन्ध बांधते हैं। इस नीच प्रथाको शीघ्र ही बन्द कर देना चाहिये । इसमें धनी निर्धन या किसी भी आयुकी कोई शर्त नहीं होनी चाहिये । ४०-कविवर श्री. कल्याणकुमार 'शशि'-मापसे जो नुक्तेकी बात करते हैं वे स्वयं उपहासास्पद बनते हैं। आपसे मरणभोजकी आशा हिन्दू मुस्लिम समझौता जैसी है । इस भयंकर प्रथाका समाजसे शीघ्र ही नाश होना चाहिये । ४१-५० छोटेलालजी परवार-सुपरि० दि० जैन बोर्डिंग अहमदावाद-मैं इस भयंकर प्रथाका कट्टर विरोधी हूँ। मेरे हृदयपर एक घटनाने भारी चोट लगाई है (जो करुणाजनक सच्ची घटनामोंमें नं० २३ पर मुद्रित है) तमीसे मैंने मरणभोजमें जाना छोड़ दिया है । नुक्ताका वार्ताला ही मुझे बुरा लगता है। ४२-विद्यारत्न पं० कमलकुमारजी शास्त्री-तथा बा० ममोलकचंदजी खण्डवा-जैनोंमें मरणभोज. ब्राह्मणों के अनुकरणका फल है । जैन शास्त्रोंमें इसका कोई विधि विधान नहीं है । यह प्रथा जैन शास्त्र और जैनाचारके सर्वथा विरुद्ध है। यहां पर यह भयंकर प्रथा भभी भी बुरी तरह जारी है। ४३-ब्र. नन्हेलालजी-भट्टारकीय जमानेमें ब्राह्मणोंसे यह क्रिया जैनोंमें भागई है। इसका जैनागम या जैनाचारसे कोई संबंध नहीं है। राजपूतान में तो कहीं की जैन लोगोंमें 'श्राद्ध' भी करते हैं। वागड़ प्रान्त में तो इतना रिवाज़ है कि यदि किसीकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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