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सुप्रसिद्ध विद्वानों और श्रीमानोंके अभिप्राय। [४५
इन सम्मतियोंके अतिरिक्त मेरे पास और भी अनेक विद्वान् तथा श्रीमानोंके पत्र माये थे जिनमें उनने मरणभोजके प्रति अपना विरोध प्रगट किया है और मेरे कार्यकी मनुमोदना की है। उन सबकी सम्मतियां और विचार प्रगट करना स्थानामावके कारण शक्य नहीं है । इसलिये यहांपर मात्र उनमें से कुछके नाम ही प्रगट किये जाते हैं मतः वे मुझे क्षमा प्रदान करेंगे।
१-५० कुन्दनलालजी न्यायतीर्थ भोपाल, २-मा० मोतीला• लनी तलवाड़ा, ३-श्री० फूलचन्दजी सोगानी शोपुरकलां, ४-बा०
नेमीचन्दजी पटोरिया वकील छिंदवाड़ा, ५-५० भुवनेन्द्रकुमारजी 'विश्व' जबलपुर, ६-मा० जिनेश्वरदासजी भेलसा, ७-मा० ज्ञानचन्दजी सिरोंन, ८-मा० उत्तमचन्दजी लखनादौन, ९-श्रीमान् कपूरचन्दजी केवलारी, १०-श्रीमंत सेठ विरधीचन्दजी सिवनी, ११पं० सुमेरुचन्दजी न्यायतीर्थ कोलारस, १२-पं० रवींद्रनाथजी न्यायतीर्थ रोहतक, १३-पंडित महेन्द्रकुमारजी न्यायतीर्थ बनारस, १४ला० जौहरीमलजी सर्राफ देहली, १५-१० सुदर्शनलालजी एटा, . १६-बा० कपूरचन्दजी सं० जैन संदेश आगरा, इत्यादि ।
- मरणभोज कैसे रुके ? प्रत्येक कुरीतियां जबर्दस्त आन्दोलनके प्रभावसे शक्तिहीन होकर नष्ट हो जाती हैं। ऐसी भनेक रूढ़ियां आपने नष्ट होती हुई देखी हैं। इसी प्रकार आन्दोलन करनेसे मरणभोजका रुक जाना भी भशक्य नहीं है। माप इस पुस्तकके 'मरणभोज विरोधी आन्दोलन'
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