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मुमसिद्ध विद्वानों और श्रीमानोंके अभिप्राय। [८१ नहीं किया गया है। जीवराज गौतपकी बहू का भी नहीं किया गया। वृद्धावस्थाके कारण मैं भ्रमण नहीं कर सकता, यदि आप यहां भाकर मेरे साथ घूमें तो सोलापुर जिले में यह प्रथा बन्द कराई जा सकती है।
३७-५० कन्हैयालालजी राजवैद्य कानपुर-जहां कुटुम्बी लोग रोरहे हों वहां पत्थर-हृदयी लोग न जाने कैसे लड्डू गटकते हैं। मेरे तो. मरणभोजका त्याग है । इस प्रथाका जल्दी ही नाश होना चाहिये।
३८-श्री. विष्णुकान्तजी वैद्य संपादक 'वैद्य' मुरादाबाद-मरणभोज करना जैन शास्त्र और जैनाचारकी दृष्टिसे सर्वथा अनुचित है। जैन समाज के लिये यह एक भारी कलंक है। इसे सर्वथा बंद कर देना चाहिये । यहां मरणभोज प्रायः बंद है।
____३९-जैन समाजभूषण स्व० सेठ ज्वालाप्रसादजी-अपने समाजमें होनेवाली मरणभोजकी नीच प्रथाने समाजकी सभ्यता, चना, महानता, और धार्मिकत.का दिवाला बोल दिया है । यह मरणभोजकी घृणित प्रथ समाजके माथे एक बड़ा भारी कलंक है । मरणभोज खाय र दया धर्म और प्रेमभावका खुले मैदान गला काटा ज.रहा है, या मृतकमोनके बहाने दुख. यों का खून चूमा जारहा है । मृतक नो का किसी भी जैन सूत्र में उल्लेख नहीं है। यह कुप्रथा जैन धर्म के सर्वथा विरुद्ध है और दूसरों की देखादेखी जैन समाजमें प्रचलित होगई है । जो हृदयहीन मनुष्य इस कुपथाकी किसी प्रक से पुष्टि करते हैं वे केवल लड्डू
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