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मरण मोजके प्रान्तीय रिवाज ।
[ ५३ मरणकी अशुद्धि योंही दूर होजाती है तब सभी आयुके मरणकी अशुद्धि भी स्वयमेव दूर हो ही जायगी । अतः मरणभोज सर्वथा बंद कर देना चाहिये ।
३- भोपाल में भा० दि० जैन परिषदके प्रयत्न से भव मरणभोज बन्द होगया है । सेठ गोकुळचन्दजी परवारने अपनी पत्नीका मरणभोजन करके ७०००) दान देकर जैन कन्या पाठशाला स्थापित की है । इसी प्रकार सेठ सुन्दरकालजीने अपनी माताजीका मरणभोज न करके विमानोत्सव किया और विद्वानोंको एकत्रित करके भाषण कराये थे । यह है आदर्श कार्य I
एक सज्जन लिखते हैं कि तलवाड़ा ( डूंगरपुर) में तथा सारे वागड़ प्रांत में मरणभोजकी भयंकर प्रथा चालू है । प्रत्येक परिणीत व्यक्तिका ( चाहे वह १५ - २० वर्षका भी हो ) मरणभोज किया जाता है। पंचोंका यह कानून भटल है । यदि शक्ति या सुविधा न हो तो माह, दो माह, वर्ष दो वर्ष या कई वर्ष बाद भी पंच लोग मरणभोज लेकर ही छोड़ते हैं ।
शोपुरकलां के एक सज्जन लिखते हैं कि यहां पर मरणके तीसरे ही दिन कुटुम्बियों को हलुवा, पूरी और चने खिलाये जाते हैं । पन्द्रह वर्ष से ऊपर के सभी स्त्री पुरुषोंका मरणभोज किया जाता है । यहां यह आवश्यक कार्य समझा जाता है । यदि कोई न कर सके तो लोग उसे बुरी नज़र से देखते हैं और ताना देते हैं । बारह दिन के बाद मरणभोज करना पड़ता है। स्त्रीके मरनेपर भगुवा कपड़े बांटे जाते हैं और समधी ब्याहीको वस्त्रोंकी पहरामनी दी जाती है ।
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