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करुणाजनक सच्ची घटनायें ।
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इतने में ट्रेनका समय होनेसे बाहर के कुछ आदमी आपहुंचे। बूढ़े पिताने उठकर उनके सामने सिर कूट लिया, छातीमें मुक्का दे 2 मारे, जमीनपर गिर पड़ा। उधर स्त्रियां करुणा - कुन्दन कररही थीं । फिर भी पंच लोग लड्डू गटकर रहे थे । मगर मुझसे नहीं खाया गया । और तभी से मैंने मरणभोज त्यागकी प्रतिज्ञा की और कई जगह इस राक्षसी प्रथाको बन्द कराया ।
२३ - विधवाके गहने वेच डाले - पंडित छोटे कालजी परवार सुपरि० महमदाबाद बोर्डिंगने लिखा है कि हमारी जातिमें: ३० वर्षीय युवककी मृत्यु हुई । उसकी स्थिति बहुत खराब थी । : जिस दिन कमाने न जावे उस दिन भूखा रहना पड़ता था । फिर भी जातीय रिवाज और शर्मके कारण तेरई करना पड़ी । विधवाके सिर से पैर तकका गहना ( जो चांदी का था ) उतारा गया और २५) में बेच दिया गया ! उनसे पगे खाजे बनाये गये । सब लोग जीमने बैठे। मैं भी उनमें से एक था । मृत युवकके बूढ़े बापको भी बिठाया गया। बहुत समझानेपर उसने खाजेका एक और तोड़ा मौर बड़े ही जोरसे की भारी ! उधर युवती विधवा चिल्ला रही थी जिससे पत्थर भी पिघल जाता । मैं भीतर ही भीतर से पड़ा। पंच लोग खाजा उड़ा रहे थे, मगर मुझसे नहीं स्वाया गया । वह दृश्य आज भी मेरी आंखों के सामने घूमता है । एक नहीं, ऐसी अनेक घटनायें होती रहती हैं ।
इस प्रकारकी २०-२५ ही नहीं, किन्तु सैकड़ों करुणाजनक घटनायें मेरे पास संग्रहीत हैं जो मरणभोजका दुष्परिणाम, पंचोंका
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