Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

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Page 79
________________ करुणाजनक सच्ची घटनायें। [६५ हूं।" इससे पाठक समझ सकेंगे कि मरणभोजिया पंच इस प्रकार न जाने कितनोंका जीवन बर्बाद कर देते हैं। १९-शादीके रुपया मरणभोजमें लग गयेभेलसाके पास एक गांवमें एक बुढ़िया थी। उसका एक ही गरीब पुत्र था। वह वंजी करके जैसे तैसे गुजर करता था। माताकी तीत्र इच्छ। थी कि वह अपने पुत्रका विवाह कराये और बहू को देखकर मरे । इसलिये उसने जैसे तैसे १५०) इक्ट्ठे करके छिपा रखे थे मगर गरीबको कन्या कौन देता ? भाखिर वह बुढ़िया मर गई। बहू देखनेकी इच्छासे जीवनभरमें संचित किया गया वह धन पंचोंने मरणभोजमें लगवा दिया और उसका बिवारा गरीब पुत्र कंगालका कंगाल और अविवाहितका अविवाहित रहा ! 'जिस प्रकार पंच लोग मरणके लड्डू खानेसे नहीं चकते उसी तरह क्या कोई कभी गरीबोंके शादी विवाहकी भी चिन्ता करता है ? नहीं, उन्हें इससे क्या मतलब ? २०-मरणभोजन करनेसे नौकरी छोड़ना पड़ीजैन समाजके एक सुप्रसिद्ध लेखक विद्वान शास्त्री लिखते हैं कि मेरी पत्नी मात्र १८ वर्षकी आयुमें मर्ग सिधारी। मरनेके पूर्व उसने मुझसे कहा था कि मेरा मरणभोज मत करना । मैंने ऐसा ही किया । तब गांवके लोगोंने कहा कि यह स्वार्थी है, मतलबी है, खुदगरज़ है, पढ़ा लिखा होनेपर भी उन्लू है। मैंने यह सब गालियां पुनकर भी नुक्ता नहीं किया। भाखिरकार मुझे पाठशालाकी नौकरीसे हाथ धोना पड़े। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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