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मुपसिद्ध विद्वानों और श्रीमानोंके अभिप्राय । ( ७१
४-वाणीभूषण पं० तुलसीरामजी काव्यतीर्थ षडौत-आपने बुन्देलखण्ड जैसे प्रदेशमें और फिर ललितपुर जैसे केन्द्रमें तेरई न करके अवश्य ही सत्साहस किया है। इस साहसका मैं हार्दिक अनुमोदन करता हूँ। यहां अग्रवालोंमें तेरईके दिन मात्र कुटुम्बीजन ही जीमते हैं।
५-५० बंशीधरजी न्यायालंकार-जैन सिद्धान्त महोदधि, स्यावादवारिधि, जैन सिद्धान्त शास्त्री, प्रधानाध्यापक स० हु० दि. जैन महाविद्यालय इन्दौरने अपनी सासूके मरणमोजके संबंध मेरे पत्रके उत्तरमें लिखा था कि पुक्केलाल फेरनलालको इस दरिद्राक्रान्त जीवनमें तेरई करके अपने भापको ज्यादा दरिद्र व दुखी नहीं बना लेना चाहिये । मेरी थोडीसी भी राय नहीं है कि वे तेरई करें। न जातीय एवं समाजके लोगोंको ही चाहिये कि वे सुक्केलालको तेरई करनेको वाध्य करें। न खुद उन्हें तेरई करनेके लिये उत्सुक होना चाहिये ।
६-५० कैलाशचन्दजी शास्त्री-संपादक जैन सिद्धान्त भास्कर, धर्माध्यापक स्याद्वाद महाविद्यालय काशी-मरणभोज मुझे उचित नहीं जान पड़ता। इसकी भावश्यक्ता भी नहीं है । इसे बंद कर देना चाहिये।
७-५० के० भुजबली शास्त्री-संपादक जैन सिद्धांत मास्कर मारा-मूडबिद्रीकी तरफ मरणके १६वें या २१वें दिन अपनी शक्तिके अनुसार मृत व्यक्तिके घरवाले मंदिरमें प्रायश्चित्त (दाहादि जनित) के रूपमें मभिषेकादि करते हैं। तथा विरा.
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