Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

View full book text
Previous | Next

Page 89
________________ सुप्रसिद्ध विद्वानों और श्रीमानोंके अभिप्राय । [ ७५ मरणभोज जैन शास्त्र और जैनाचार की दृष्टिसे सर्वथा विरुद्ध और अनुचित है। नुक्तेसे लौकिक शुद्धिका भी कोई संबंध नहीं है । जैन समाजमें इसकी कतई आवश्यक्ता नहीं है । मैंने कई जगह इस प्रथा को बंद कराया है। कुछ मूर्ख तो अपने जीते जी अपना नुक्ता कर जाते हैं और मूढ़ समान उसमें जीमती है । गुजरात में कई जगह तो ब्राह्मणोंको बुलाकर रजाईं, गदेला, तकिया, जूता ( जोड़ा ), अंगरखा, पगड़ी, लोटा, थाळी आदि भी देते हैं । यह जैनों का दयनीय अज्ञान है । १८ - जैनधर्मभूषण ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीमैं आपकी दृढ़तापर साबाशी देता हूं, जो आपने अपने पिताजीकी तेरई नहीं की । जैन शास्त्रोंकी दृष्टिसे तो शुद्धि होनेपर मंदिर में यथाशक्ति विशेष पूजा व धर्मार्थ तथा करुणाभावसे चार दान करना चाहिये । मरणभोज इनके अन्तर्गत नहीं है और न जैन शास्त्रों में इसका विधान है और न यह आवश्यक ही है। इसे सर्वथा बंद कर देना चाहिये । मरण भोजसे बड़े २ सेठों को भी दिवालिया होना पड़ा है। १९ - ब्रह्मचारी प्रेमसागरजी पंचरत्न - भट्टारकोंके प्रभावसे जैनोंमें यह ब्राह्मणी प्रथा घुस गई है । मरणभोज जैन शास्त्र और जैनाचार की दृष्टिसे सर्वथा अनुचित है । न तो यह आवश्यक है और न इसके बंद कर देने से कोई हानि ही होगी, प्रत्युत समानका हित ही होगा। जैन समाजमेंसे इस घातक प्रथाका शीघ्र ही समूल नाश होना चाहिये । २० - ३० मुनिश्री न्यायविजयजी न्यायतीर्थ - एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122