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करुणाजनक सच्ची घटनायें ।
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४०) वापिस दे दिये। तीसरे दिन पंच लोग उस मृतकके घर एकत्रित हुये और विधवासे मरणभोजके लिये आग्रह किया । उसके हजार इंकार करनेपर भी बहादुर पंचोंने उस गरीब विधवासे नुक्ता करवा ही डाला। इस नुक्तेने उस विधवा और उसके बच्चेपर जो विपत्ति ला पटकी उसकी कहानी अत्यन्त मर्मान्तिक वेदना उत्पन्न करनेवाली है।
६-बारह वर्ष बाद भी नुक्ता करना पड़ा-जयपु. रक पास एक ग्राममें एक कुटुम्बहीन व्यक्ति था। उसके मांबापको मरे करीब १५ वर्ष होचुके थे। फिर भी पंचोंने उसका पीछा न छोड़ा। वह बिचारा गरीब नौकर था। १५-२० वर्षमें वह २००) एकत्रित कर सका था। लोगोंके भाग्रहसे उसने एक रुपयाके व्याज पर २००) लिये और २००) अपनी २० वर्षकी कमाई के मिलाकर मां-बापका पुराना उधार मरणभोन कर डाला। पंच लोग लड्डू उड़ाकर चले गये । आज वह युवक कर्जमें फंसा है और भरपेट भोजन तक नहीं पाता । ऐसी स्थितिमें लड्डू खानेवाले पंचोंमेसे अब कोई उसकी खबर नहीं लेता।
७-अठारह वर्षका भी मरणभोज-राजपूतानेके एक ग्राममें एक भठारह वर्षके युवकको मृत्यु हुई। फिर भी पंचोंने उसका मरणभोज कराया। उसकी १५ वर्षीया विधवा हृदय-विदा. रक रुदन कर रही थी और निर्दयी पंच लड्डू गटक रहे थे। यह है हमारी अहिंसाका एक नमूना !
८-मुर्देकी छातीपर मरणभोज-राजपूतानेके एक
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