Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

View full book text
Previous | Next

Page 76
________________ माणमोज । की। मगर पंच लोग नहीं माने । उनने कहा कि तू घर बेचदे, गहने बेच दे मगर नुक्ता कर, अन्यथा तेरा अब पंचोंसे कोई संबन्ध नहीं रहेगा। वह बिचारी जाति बहिष्कारसे घबराई और मरणभोजकी स्वीकृति दे दी । इतने में एक महाशय बीच में ही कूद कर बोले कि इस पर पहलेका एक नुक्ता उधार है, जब तक यह उसे नहीं करेगी, तब तक यह नुक्ता भी नहीं हो सक्ता, इस लिये दो नुक्ता होना चाहिये । यह खबर विषवाके पास पहुंचाई गई। इसे सुनकर वह मुन्न हो गई, बहरी हो गई और अपना सिर कूटने लगी। -मगर पंचलोग नहीं माने । उसका घर और गहने विकवा कर डबल मरणभोज कराया गया। यह घटना जिन शास्त्री पण्डितजीने लिख कर भेजी है, वे लिखते हैं कि मैं भी इस मरणभोजके जिमकड़ों में से एक था। हम लोग जीम रहे थे और सामने ही विधवा बेसुध पड़ी थी। उसकी आँखोंसे आँसुओंकी अविरल धारा बह रही थी। मगर पाषाणहृदयी पंचोंको उसकी कोई चिन्ता नहीं थी। यह दृश्य मुझसे नहीं देखा गया और उसी दिनसे मैंने मरणभोजमें न जानेकी प्रतिज्ञा करली। वह विधवा बर्बाद होगई, उसकी खबर लेनेवाला भाज कोई नहीं है। १३-शरीरके टुकड़े होजाने पर भी मरणभोजग्वालियर राज्यके एक प्रसिद्ध नगरकी घटना है। एक २४ वर्षके युवककी मृत्यु पुटास निकालते समय भाग लग जानेसे होगई। शरीरके टुकड़े इधर उधर उड़ गये। २० वर्षकी विधवा और ५५ 'Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122