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मरणभोज विरोधी आदोलन । [३९ किन्तु कुटुम्बीजन तो मुझे खूब भला बुग कहते थे और कई तरहसे मुझे शर्मिदा करते थे। कुछ विवेकी सज्जन मुझे इस विरोधमें भी टिके रहने के लिये प्रोत्साहित करते रहते थे।
तार्य यह है कि मैं स्वानुभवसे इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि यदि कोई व्यक्ति मरणभोज न करना चाहे तो उसे इस तरह शर्मिन्दा किया जाता है कि उसका टिका रहना अशक्य सा होजाता है । इसलिये मैं समझता हूं कि ४० या कम बढ़ वर्षकी कोई मर्यादा न रखकर मरणभोज मान बन्द कर दिया जाय, चाहे वह जवानका हो या बूढ़ेगा। जैनसमाजपर लदे हुये इस भयानक पापको जल्दीसे जल्दी मिटानेका प्रत्येक युवक और संस्थाओंका कार्य है। परिषदका प्रयत्न ।
हमारी तमाम जैन संस्थानों में से भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषदने मरणमोजके विरुद्ध सबसे अधिक भान्दोलन किया है। उसके भनेक उत्सवोंमें मरणभोज विरोधी प्रस्ताव होते रहे हैं। समानपर इस आन्दोलनका यत्किचित् प्रभाव भी पड़ा है। किन्तु सतनाके गत १३ वें अधिवेशनमें इस अमानुषिक प्रथाके विरुद्ध जो ममली कार्य हुमा था वह समाजके शुम भविष्यका सूचक है । मैंने दूसरे दिन ( ता० १२-४-३७ ) की बैठकमें इसप्रकार प्रस्ताव रखा था:
"मरणमोनकी प्रथा जैनधर्म और जैनाचारके सर्वथा विरुद्ध तथा अनावश्यक एवं असभ्यताकी द्योतक है, इसलिये यह परिषद् पुनः प्रस्ताव करती है कि इस घातक प्रथाको शीघ्र बंद कर दिया
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