Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

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Page 61
________________ मरथमोजके प्रान्तीय रिवाज। [४७ छुट्टी होजाती है। जहां तक मैं जानता हूं, अन्यत्रके जैनोंमें यह रिवाज़ नहीं है।" यद्यपि बुन्देखण्डके शहरोष भव इतना क्रियाकाण्ड नहीं रहा है, फिर भी देहातोंमें तो यह सब कुछ किया जाता है। . इसके अतिरिक्त अन्य प्रांतोंमें भी जो रिवाज प्रचलिन हैं - उनमेसे जितने प्रांतोंके मुझे प्राप्त होसके है वह नीचे दिये जाते हैं:... यू० पी० में-मेठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर मुरादाबाद तथा दिल्ली आदिमें अब मरण मोजकी प्रथा लगभग बिलकुल बन्द होगई है। कहीं२ किसी वृद्ध पुरुषकी मृत्यु होनेपर कोई२ खांडकी टिकड़ी बांट देता है। मगर यह भी बहुत कम । पहले इन नगरोंमें वृद्ध पुरुषका माणभोज होता था, वह भी अब बन्द होगया है। अलीगढ़ तथा हाथरस आदिमें अभी भी मरणभोज होता है, कारण कि वहां स्थितिपालकोंका अड्डा है । सी० पी० में-कटनी, जबलपुर, सिवनी, नागपुर, अमरा. वती आदिमें पहले तो मरणभोजका खासा दौर दौरा था, और बुंदेलखण्ड प्रांतकी भांति ही तमाम रीतिरिवाज एवं मूढ़ता प्रचलित थी, किन्तु अब यह रिवाज कम हो हा है और कई जगह ३०३५-४० वर्षसे नीचे का मरणभोज नहीं होता। किन्तु जबतक मरणभोनका नामनिशान न मिट जाय तबतक सचा सुधार नहीं कहा जासकता । मारवाड़ प्रान्तमें-मरणभोजकी प्रथा सबसे अधिक भयंकर है। किसी पुरुषके मरनेपर उसकी विधवाको कई विपकि बीवमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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