Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

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Page 58
________________ ४४] मरणमोज। मस्थिशेष, जिसे कि यहां 'खारी' कहते हैं, उठानेके लिए कुछ लोग चितापर जाते हैं और उसे बटोरकर भामतौरसे किसी पासके जलाशयमें छोड़ भाते हैं; परन्तु जो लोग समर्थ होते हैं वे पवित्र गंगाजलमें छोड़नेके लिए ले जाते हैं, और प्रयाग पहुंचकर पंडोंको दान-दक्षिणा भी यथाशक्ति देते हैं। शामको घीका दीपक लेजाकर चिताभूमिपर जला माते हैं। यह प्रतिदिन तबतक जलाया जाता है, जब तक कि दिन-तेरहीं नहीं होजाती है। स्मशान-भूमिके निर्जन अन्धकारमें मृतव्यक्ति के लिए प्रकाशकी व्यवस्था कर देना ही शायद इसका उद्देश्य है। 'खारी' उठ चुकनेपर जितने कुटुम्ब-परिवार के लोग होते हैं उन्हें भोजन कराया जाता है। इसके बाद तेरहवें दिन मृत श्राद्ध किया जाता है, जो सर्वपरिचित है और जिसमें जातिके पंचोंके सिवाय दूसरी जातिके उन व्यक्तियोंको भी खूब खर्चीला भोज दिया जाता है, जो दाह-क्रियामें 'लकड़ी' देने जाते हैं। यह तो इतना भावश्यक है कि गरीबसे गरीब मनाथ विधवायें भी इस वर्चसे छुटकारा नहीं पा सकती-कर्ज काढकर भी उन्हें यह करना पड़ता है। इसके बाद छ:मासी (पाण्मासिक श्राद्ध) और बरसी (वार्षिक श्राद्ध ) भी की जाती है; परन्तु ये सर्वसाधारणके लिए भावश्यक नहीं हैं, धनी मानी ही इन्हें करते हैं। फिर भी नामवरीके लोभमें दूसरों के द्वारा पानी चढ़ाये जानेपर असमर्थ भी बहुधा कर डाला करते हैं । स्वयं मेरे सालेकी मृत्यु पर, जो बहुतही गरीब थे, उनकी पत्नीने तीनों श्राद्ध करके अपना जन्म सार्थक किया है। इन तीनों श्राद्धोंसे तो मैं परिचित था; परन्तु भवकी बार यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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