Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

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Page 51
________________ मरणमोजविरोधी आंदोलन । [३७ किया । उनसे पूछा कि क्या आप लोग ऐसे मरणभोजके लिये भी तैयार हैं कि वृद्ध पिता जीवित है और युवक पुत्र मर गया है ? तब मुझसे सबने प्रत्यक्षमें तो इंकार कर दिया, लेकिन भीतर ही भीतर विरोधी चर्चा चलती रही। सबसे अधिक कठिनाई तो यह थी कि मेरे कुटुम्बीजन स्वयं मरणभोजके लिये आग्रह कर रहे थे। कारण कि उन्हें नाक रखनेकी पड़ी थी! किन्तु हमारे पिताजीके विचार मेरे साथ मिलते जुलते थे। वे वृद्ध होकर भी वर्तमान समाजसुधारको प्रायः पसंद करते थे। बस, फिर क्या था ? मेरा दिल दूना होगया और भाईका मरणभोज नहीं होने दिया। उधर ललितपुरकी विचारशील पंचायतने भी यह प्रस्ताव कर लिया कि ४० वर्षसे कम मायुवालेका मरणभोज न किया जाय । इस सभामें हमारे नगर (ललितपुर) के मुखिया स्व० सेठ पन्नालालजी टंडेयाने बड़ा ही प्रभावक भाषण दिया और साफ साफ कह दिया कि मरणभोजकी प्रथा धार्मिक नहीं है, किन्तु समानपर यह एक भारी बोझ है। अपने पूर्वजोंकी सभी बातोंका अनुकरण नहीं करना चाहिये । हमें कुछ विवेकसे भी तो काम लेना चाहिये। कमसे कम ४० वर्षके नीचेका मरणमोन नहीं किया जाय । और ४० वर्षसे ऊपर भी मृतव्यक्तिके कुटुम्बियोंकी इच्छापर रक्खा जाय । इसी विषयपर मनेक भाषण हुये थे और श्री० टडेयाजीके कथनानुसार प्रस्ताव सर्व सम्मतिसे पास होगया था। ___उस प्रस्तावका ललितपुरमें मधिकांश पालन हुमा, किन्तु . वर्षसे ऊपरकी मृत्युके भोन बन्द नहीं हुये। लेकिन जब गत वर्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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