Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

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Page 26
________________ १२] मरणभोज। जाती है। यहांपर सूतका दिके त्याज्य दिन जे हैं" कहकर कालशुद्धि पर ही भार दिया है। इसके लिये मरणभोज आदिकी मावश्यक्ता नहीं है । अन्यथा उसका उल्लेख भी यहां अवश्य किया . जाता। इससे भी सिद्ध है कि मरणभोनका न तो शास्त्रीय विधान है और न उसकी कोई भावश्यक्ता ही है। फिर भी जो मरणभोज करते हैं वे अज्ञान, अविवेक, हठ और मान बढाईके भूखे हैं यही समझना चाहिये। शङ्का समाधान । माणमोजके सम्बंधमें लोग जो विविध शंकायें किया करते : हैं वे प्रायः इसप्रकारकी हुआ करती हैं। उन्हें यहांपर लिखकर साथ ही उनका उत्तर भी दिया जाता है। (१) शंका-क्या हमारे पूर्वज मूर्ख थे जो वे अभीतक नुक्ता ( मरण भोज ) करते आये हैं ? हमें भी उनका अनुकरण करना चाहिये। समाधान-पहली बात तो यह है कि प्रथमानुयोग या अन्य इतिहाससे यह सिद्ध नहीं होता कि हमारे प्राचीन पूर्वज मरणभोज करते थे। किसी भी चक्रवर्ती राजा महाराजा या महापुरुषके मरणभोजका कहीं कोई उल्लेख नहीं पाया जाता। कई विदेशी यात्री भारतमें भाये जिनने भारतके छोटेसे छोटे रीतिरिवाजोंका वर्णन किया है, किन्तु उनने भी कहीं मरणभोजका कोई उल्लेख नहीं किया। · इमसे सिद्ध है कि हमारे प्राचीन पूर्वज मरणभोज नहीं करते थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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