Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

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Page 47
________________ मरणमोज विरोधी आन्दोलन। (३१ प्रस्ताव पास किया जावे कि-" ४० वर्षसे कम उमरकी मृत्यु होनेपर उसका जीवनवार बिलकुल न हो।" यद्यपि यह प्रस्ताव बहुत सीधा सादा था और इसमें ४० वर्षकी ही हद रखी गई थी, फिर भी कुछ लोगोंने उसमें ऐसे संशोधन पेश किये जो जैन समाजको कलंकित करनेवाले हैं। इनसे ज्ञात होजायगा कि जैन समाजमें मरणभोजका कितना जकन्य मोह है। उन संशोधनोंके कुछ नमूने इसप्रकार हैं १-कुछ कन्याओं को तो जिमाना ही चाहिये । २-जितने लोग भरथीके साथ स्मशान जावें उन्हें जिमाना चाहिये । ३-पन्द्रह वर्ष से अधिक आयुके मृत व्यक्तिका मरणभोज किया जाय। ४मविवाहितकी जीवनवार न करके विवाहितोंका मरणभोज किया जाय। ५-यह पुरानी प्रथा है, धर्मसे इसका सम्बन्ध है (?) इसलिये इसे नहीं तोड़ना चाहिये । ६-चालीस वर्ष अधिक होजाते हैं, इसलिये वीस वर्ष तककी ही आयु रखनी चाहिये । इत्यादि । जहां इसप्रकारके विचित्र संशोधन पेश किये गये थे वहां हमारे बुन्देलखण्डके अनेक विचारशीक श्रीमानोंने इन संशोधनोंका डटकर विरोध भी किया और निर्भीकतापूर्वक इसप्रकार अपने विचार प्रगट किये थे: (१) सिंघई कुँवरसेनजी सिवनी-धर्मशास्त्रों ने दिन केवल शुद्धिका रलेख है. उस हा जीवनवारसे कोई संबंस नहीं है । शुद्धि के लिये भोजन आवश्यक नहीं है। इसे धार्मिक कहकर मइंगा न लगाना चाहिये । इस रूढ़ि। चानू रहनेसे समाजशी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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