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मरणमोज । (९) शंका-जब कि मरणभोजकी प्रथा उठा दी जायगी तो फिर मरणशुद्धि-सूतक मादिकी भी क्या जरूरत है ! उसका कमन भी तो शास्त्रोंमें नहीं है।
समाधान-मरणभोजसे शुद्धिका कोई संबन्ध नहीं है। मरण शुद्धिकी आवश्यक्ता तो प्रत्येक बुद्धिमानके ध्यानमें मा सक्ती है। कारण कि मरणके कारण स्वाभाविक मशुचिता हो ही जाती है। पं० दौलतरामजीके क्रियाकोषमें भी शुद्धिका विधान है। और बदि नहीं भी होता तो भी बुद्धि इतना स्वीकार किये बिना नहीं रहती कि मरणशुद्धि करना-नहाना घोना मादि आवश्यक है। किन्तु मरणभोनका इस शुद्धिके साथ गठजोड़ा कर देना उचित नहीं है।
(१०) शंका-तेरहवें दिन मरणभोज करके शुद्धि होती है और तभी गृहस्थ पूजा तथा दानादि देनेका अधिकारी होता है। मरणभोनके बिना उसमें पूजा दानादिकी पात्रता कैसे आसक्ती है ?
समाधान-तेरहवें दिन शुद्धि होना तो कालशुद्धि कहलाती है। मरणभोजमें शुद्धि करनेकी शक्ति नहीं है। यदि मरणभोज. करनेसे ही शुद्धि होती है तो इसका स्पष्ट अर्थ यही हुमा कि मरणभोजमें जो लोग जीमनेको आते हैं वे अशुद्धिमें जीमते हैं और उनके जीम लेनेपर शुद्धि होती है । तब तो पंच लोग अशुद्धिमें जीमनेके कारण पापके भागी होंगे।
यदि कोई यों कहे कि शुद्धि तो तेरहवें दिन हो ही जाती है उसके बाद मरणभोज होता है। तो इसका अर्थ यह हुमा कि शुद्धि करनेमें मरणभोज कारण नहीं है, कारण कि वह शुद्धि होने के बाद
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