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घका समाधान।
[१५ दुःखशान्ति होती ही है और उनके यहां भी लोग समवेदना बतानेके लिये भाते ही हैं । इसलिये भी मरणभोज करना व्यर्थ सिद्ध होता है।
(३) शंका-मृत व्यक्ति के बाद पंचोंको भोजन करानेसे मृतात्माको शान्ति मिलती है और समदत्ति (दान) का भी अवसर मिलता है।
समाधान-जैन सिद्धान्तानुसार मृतव्यक्ति के बाद भोजन कराने या न करानेसे मृतात्माका कोई संबंध नहीं रहता। वह जीव तो एक दो या तीन समयमें ही परमवमें पहुंच जाता है। इसलिये मरणभोजसे मृतात्माकी शान्ति मानना महामूढ़ता या घोर मिथ्यात्व है। रही समदत्तिकी बात, सो यह भी मज्ञानकी द्योतक है। इस विषयमें मैं आगे 'समात्तिपारण' में लिखूगा।
(४) शंका-हम अभीतक दूपरोंके यहां मरणभोजमें जाकर बड्डू खाते रहे हैं तो अब अपने यहां मौका मानेपर विना बदला चुकाये कैसे बन्द करदें ?
समाधान-इस शंकामें अंधानुकरण और कायरता है। यदि अभीतक हम अपनी मूर्खतासे इस अमानुषिक कृत्यमें भाग लेते रहे हैं तो क्या आवश्यक्ता है कि मात्र बदला चुकानेकी गरजसे इस मूर्खताकी परम्पराको चालू रखा जाय ? जबकि अब मरणभोजकी घातकता मालूम होचुकी है तब उसे तत्काल छोड़ देना चाहिये और उसका प्रारंभ अपने घरसे ही करना चाहिये।
यदि इस शंकामें कोई दम है तो फिर किसीसे कोई भी व्य. सन नहीं छुड़ाया जासकता। क्योंकि व्यसनी भी तो यही शंका कर
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