Book Title: Maran Bhoj
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Singhai Moolchand Jain Munim

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ पर इन पं० परमेष्ठीदासजीमें धर्म-सेवाकी यह स्प्रिट फूंकने. वाले थे महरौनीके सुविख्यात सिंघई वंशके चमकते हुए सितारे श्री० मौजीलालजी उर्फ " दाऊज" ही। भापकी मात्मा धर्मभावनाओंसे निरन्तर सरशार रहती, प्रतिदिन दर्शन, स्वाध्यायादि धर्म कार्य करते। खुद समाज-सुधारक तो थे ही। वे अपने लघु पुत्र पं० परमेष्ठीदासजीके तमाम आन्दोलनों, विचारों, लेक्चरों, लेखों वगैरह प्रवृत्तियोंसे न सिर्फ सहमत रहते बल्कि प्रोत्साहन भी देते रहते। परोपकारी सिंघईजी सफल वैद्य थे। औषधियाँ बनाते और सत्पात्रोंको मुफ्त तकसीम करते । जिंदगीके आखिरी रोज़ भी एक मरीजको देखने गये, मौषधि देकर लौटे, और उसी दिन माश्विन वदी १३ वि० सं० १९९३ (ता० १५-१०-३६) की रात्रिको निराकुलतापूर्वक स्वर्गवासी होगये । संवत् १९८८ में भापके ज्येष्ठ पुत्र श्री० बंशीधरजीका मात्र ३२ वर्षकी भायुमें स्वर्गवास होगया। लेकिन मापने साहसपूर्वक उनका "मरणभोज" करनेसे साफ इन्कार कर दिया। मापके द्वितीय पुत्र सिं० मूलचन्द्रजी जन ललितपुरकी एक सुप्रसिद्ध पेढ़ीपर कार्य करते हैं। और लघुपुत्र श्री० ५० परमेष्ठीदासजी न्यायतीर्थ सूरतमें जैनमित्र कार्यालयके मैनेजर हैं । और "वीर" का संपादन भी करते हैं । सन्तोषकी बात है कि सिंघईजीका 'मरणभोज' न करके उनके स्मरणार्थ यह पुस्तक प्रगट की जारही है। मेरी भावना है कि यह किताब सहृदय वीरोंके हृदयमें "मरणभोज" की बर्बर प्रथाके खिलाफ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 122