Book Title: Mangalkalash Kumar Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ ( ज ) I सुंदरी दीधुं नाम || || शोल वरसनी कुंवरी हवि । चोसठ कला जाणे जिनवी ॥ के जाएं पाताल कुमारि। विद्याधरी अमरी अवतार ॥६॥ घरने आंगणे करती के लि। जाणे साची मोहन वेलि ॥ सवी राणीने वाहाली तेह | ते उपर सहुनो बहु नेह ||७|| राजायें इसी दीवी जाम । वरचिंता मन पेठी ताम ॥ ए सरखो वर जोतां मले । तो मनवंबित सघलां फले ॥ ८ ॥ तव राजा अंतेरमांहि । पाउ धारया मन घरी उत्साहि ॥ सघली राणी नेली करी । पूढे राजा मन हित धरी ॥ ए ॥ त्रिलोक्यसुंदरी कुमरी जेह | तरुणपणुं पामी गुण गेह || ते माटे करवो वीवाद | खरची धनने लीजें बाद ॥ १० ॥ रुडं जाणी करज्यो काज | अमने शुं पूढो माहाराज ॥ सुरसुंदर राजा एम जणे । बेटीनुं कारण तुम तो ॥ ११ ॥ राणी सघली जोमी हाथ। कहे सांजलो तुमें प्राणनाथ ॥ डूर म देज्यो एहने सही । श्रमजीवितथी ए वालही ||१२|| महाराजानो बडो प्रधान । तेहनो बेटो रूप निधान ॥ तेहने जो ए दीकरी । जेम नित्य नयणे निरखुं खरी ॥ १३ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ सुबुद्धिने तेडी करी । एम बोले राजान ॥ तुम सुत For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 94