Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 37
________________ (३६) न ॥॥ जमण सजाश्सहु करी। बांध्या मंम्प खास ॥ मोहोल रचाव्या अति घणा । जाणे देव आवास ॥५॥ सिंह सामंतने मोकल्यो । नोतरवा निशाल ॥ पंड्या सहित सहु आवजो।नोजनने सुविशाल ॥६॥ जोजन वेला अवसरें। पहेरी सवि शणगार ॥ मंगल श्राव्यो मलपतो । बोकराने परिवार ॥ ॥ मोहोल थकी ते उतरी । सुंदरी सवि परिवार ॥ निशालियाने निरखवा । हैडे हरख अपार ॥ ७॥ ॥ ढाल चौदमी ॥ देशी रसीयानी ॥ ॥सुंदरी श्रावेहो निजपियु नीरखवा। पहेरी पुरुषनो वेष॥सुनयनी ॥ शिरपर सोहे हो पंचरंगपाघमी। कलंगी विराजे रे विशेष ॥सुासुंगा॥केसरियोरे अंगें वाघो बन्यो। कस्तूरी महकाय ॥सु॥ फूल चंबेली हो पहेस्यां अति घणां। सहेजें सकोमल काय ॥॥सुं॥ ॥२॥ धनदत्त सुतने हो तेणीयें उलख्यो । ए सहि मुज जरतार ॥ सुवदनी ॥ पूरव पुण्यें हो ए श्रावी मदयो । हवे मुज त्रूट्यो रे किरतार ॥सुणासुं॥३॥धनदत्त सुत हो तिहां उनो थ। कीधो तेहनें प्रणाम ॥ सु० ॥ मंगलकलशें हो ते नव उँलखी। नृपनंदिनी श्रनिराम ॥ सुनयनी ॥ सुंदरी०॥४॥निशा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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