Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(६६) प्रियंगु । करमदी फणत बीजूरी॥॥ ताल तमाल हिताल । बोर कदंब हरी ॥ चंबेली रायवेली । बहुफली फूली नरी री ॥३॥ वाघ सिंहनां रूप । सावर रोज ससा री॥हरिण मानवनां रूप । साथै तेहवी वसा री॥४॥रेवा जलमांहि जोर । गज बहु केलि करे री॥निज निज टोला साथ । सालीर सरस चरे ॥५॥मोहोटो काजल काय । जीते हाथी करे री॥सो हाथणी परिवार । कुतूहल केलि करे री। ॥६॥ एक हाथणीने तेह । निज मुख कवल दीये री॥ हाथणी आपे जेह। निज मुख कवल लीये री ॥७॥ ते हाथणी\ नित्य। गजनेप्रीति घणीरी॥अन्य दिवस गज राज । आवे गण नणी री॥॥पाणी पीवा काज।गजथी पूर टली री॥रजसपणे गजराज। जाणे टोलें मलीरी॥णा मदमातो गजराज । बेह पखे दान करे री॥देखी निज परिवार।मनमां गर्व धरेरी ॥१॥ मेहली गयो मुज नाह। खबर न कांश करी री॥ रोवे गजणी तेह । नयणां नीर नरीरी ॥१९॥ रेवा नदीने तीर। उनी तेह रडेरी॥जीनीनेखड साथ । खड हड तेह पडे ॥१२॥ पमतां सम ततकाल । तेहनां प्राण गयारी॥ नमकपणाने जाव । शुन परिणाम थ
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